नेतृत्व

अधिकारियों के कोर नफरी के मुकाबले कमांडेंट नफरी का औसत 7 से 8 प्रतिषत है। स्वतंत्रता के बाद 1963 से 1965 का केवल एक पीरियड था। जब अधिकारियों के सॉर्ट टर्म आपातकालीन कमीषन की आवष्यकता पड़ी। यह वह समय था जब समय की पुकार पर प्री 1962 योजना का विस्तार किया गया । 1965 और 1971 के कनिष्ठ कमान स्तरों पर लडे़ गए युद्ध को मुख्य आघात पहुँचाया गया। दूसरे विष्व युद्ध की तरह उन्होंने अपने नियमित साथियों के साथ पारम्परिक उत्साह एवं उर्जा के साथ जवाब दिया। वर्षो के दौरान अनेक छोटे कमीषन शाखाओं का विलय हो गया। रॉयल मिलिट्री एकेडमी के सैन्ध्रुस्ट स्नातक 1969 में सेवानिवृत्त हो गए। भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून, स्नातक और द्धितीय विष्व युद्ध के दौरान अल्पसेवा/आपातकालीन कमीषन्ड अधिकारीयों ने 1947-1949 में युद्धरत कमांड स्लॉट में भारी संख्या में कमी की थी। किंग्स कमीषन भारतीय अधिकारीयों ने उच्च कमान नियुक्तीयाँ प्राप्त की।

1949 में तीनों सेवाओं के लिए त्रिवर्षीय कैडेट स्तरीय प्रषिक्षण का एक विषिष्ट प्रयोग आरंभ किया गया था। जो तीन वर्षो के कैडेट स्तरीय सेवाओं का प्रषिक्षण पूर्ण करने के उपरांत कमीषन पूर्व प्रषिक्षण के लिए सेवा कालीन अकादमियों में जा रहे थे।

यह संयुक्त सेवा स्कंध (देहरादून) था जो बाद के वर्षों में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एन डी ए) खड़कवासला बन गई।

वर्तमान में सैन्य अधिकारी चार अलग अलग धाराओं से लिए जाते है अर्थात एन डी ए; ग्रेजुएट डायरेक्ट एन्ट्री स्कीम, आई एम ए; अन्य रैंकों से चुने गए कैडेट्स प्रारंभिक तौर पर आर्मी कैडेट कोर में प्रषिक्षित किये जाते हैं। अधिकारी प्रषिक्षण अकादमी मद्रास और गया से पाँच वर्षीय सॉर्ट सर्विस कमीषन स्ट्रीम के कुछ चुनिंदा जूनियर कमीषन्ड अधिकारीयों को (केवल भारतीय और पाकिस्तान की सेनाओं में मौजूदा स्तर) को रेजीमेंटल कमीषन देने की पेषकष की जाती है। शॉर्ट सर्विस स्ट्रीम को चयन और पुनर्मूल्यांकन द्वारा नियमित कमीषन प्रदान किया जाता है । राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के अधिकारी तीनों सेनाओं में थ्री स्टॉर रैंक तक पहुँच चुके है। सेना में इस प्रकार के नेतृत्व को कैजुअल्टी अनुपात के माध्यम से इंगित किया जाता है। हमारे सभी युद्धों मे अधिकारी हताहतों की संख्या अधिक रही है। प्रबंधन विषेषज्ञ बताते है जो अधिकारी काम्बैट फॉर्म में है वे युद्ध में अधिक हताहत होते है। बहरहाल, मुद्दा यह है की जो अधिकारी सषस्त्र सेनांगों से संबध रखते है वे फ्रंट से सेना का नेतृत्व करते है और वही भारतीय सेना की ताकत होती है। नेतृत्व के समर्पण की भावना ने दषकों तक इस देष की सेवा की है। लेकिन इससे महत्वपूर्ण यह है की यह पद भलीभांत जानते है की रिमोट कंट्रोल और इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा कोई निर्देषात्मक कमांड नही होगी ।

फौजी अफसर के विषय में आम धारणा है की वह बड़ी बड़ी मूछोंवाला, निअंडरथल, लटकती हुई भौंहे और अजीबों गरीब शारीरिक संरचना से युक्त होता है। स्कूल की होनहार छात्र कभी भी सेना में भर्ती होने की नहीं सोचते। यह आम प्रेक्षक के मस्तिष्क में कभी भी नही आता कि न तो गोरिल्ला, न ही उभरते सीवी रमन और न ही आइस्क्रीम बनाने वाली कंपनी के भावी प्रमुख अधिकारी के अंदर आवष्यक, यौद्धिक नेतृत्व होता है। अकादमिक समृद्धि केवल एक प्लस प्वाइंट है, और यह एक किषोर द्वारा प्रदर्षित किया गया है जिसने एक नागरिक के तौर पर सिविल व्यवसायिक जीवन को प्राथमिकता के तौर पर चुना है। यदि एक युवा अपने अंदर की स्पष्ट बुद्धिमत्ता एवं प्रतिभा की व्याख्या जीवन और मृत्यु के निर्णय में परिणित नहीं कर पाता और असमंजस की स्थिति के लिए वो अपने गुणों को सुरक्षित रखना चाहता है तो उसका सही उपयोग आफिस, कॉलेज, या प्रयोगषाला में युद्ध भूमि से बेहतर तरीके से किया जा सकता है। ये वो स्थान है जहाँ से उसका प्राकृतिक जुड़ाव है।

भारतीय सेना के अधिकारी को अपने व्यक्तित्व को अत्यंत दक्षता पूर्ण एवं स्पष्ट संहिता के अंतर्गत शामिल करने का प्रषिक्षण दिया गया है जो नीचे दिया गया है।

‘‘तुम्हारे देष की सुरक्षा ,सम्मान एवं कल्याण

सर्वप्रथम, सदैव और हर समय सबसे पहले है

आप जिन पर कमान करते है उनका सम्मान,

 कल्याण और सुरक्षा उसके बाद आती है

और तुम्हारा खुद का आराम, सुरक्षा और कल्याण

सदैव और हर समय सबसे अंत में आता है‘‘।

युवा अधिकारी जब सैन्य सेवा करता हुआ आगे बढ़ता है तब उसे व्यवसायिक प्रषिक्षण दिया जाता है। जिससे उसे बढ़ती हुई जिम्मेवारियाँ निभाने में सहायता मिलती है। यह प्रषिक्षण संस्थान प्रारंभ से ही बनाए गए है। उनमें से सबसे षीर्ष पर राष्ट्रीय ‘रक्षा महाविद्यालय‘ है और मध्य मे सभी सेनांगों एवं सर्विसेज के ‘कॉलेज‘ं आते है और विषेष प्रबंधकीय विषेषज्ञता ‘कोर एवं सर्विस स्कूल व कॉलेजों‘ द्वारा प्रदान की जाती थी। शीर्ष पर स्थापित रक्षा प्रबंधन कॉलेज है। उच्चतर कमांड स्तर पर नेता और प्रबंधक अति सूक्ष्मता से एक दूसरे मे सम्मिलित हो जाते है। मुहाबरा ‘‘ टीथ एंड टेल ‘‘ पिछले चालीस वर्षों से सेना के शब्दकोष में है और सेना को झकझोरता रहा है। किसी को फैसला करना चाहिए कि अगर दाँत (सषस्त्र सेनांग) वास्तव में असरदार हों तो क्या दुम (उपस्कर कोर एवं अन्य सैन्य सेवाओं को मसूडे़ नही कहा जाना चाहिए।