चैटवुड कमेटी ने रेलवे स्टाफ ट्रेनिंग कॉलेज के भवनों को उपयुक्त बनाने की सिफारिश की, जो 1930 में बनकर तैयार हुए, लेकिन वित्तीय संकट के कारण आगे का काम बंद कर दिया गया। दो सरकारी विभागों के बीच आपसी समझौते से, 155.3 एकड़ के क्षेत्र में स्थापित रेलवे स्टाफ कॉलेज के भव्य भवनों और परिसर को भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना के लिए चुना गया था।
जुलाई 1931 में, समिति ने प्रत्येक सत्र में 40 जेंटलमैन कैडेटों को प्रशिक्षण देने के लिए एक सैन्य अकादमी की स्थापना की सिफारिश की, जिसमें 15 डायरेक्ट एंट्री के रूप में, किचनर कॉलेज , नौगांव से 15 रैंकधारी और 10 रियासतों से आने वाले प्रशिक्षु शामिल थे। शुरू में तीन साल की प्रशिक्षण अवधि परिकल्पित थी जिसे बाद में घटाकर ढाई साल कर दिया गया।
अकादमी के प्रथम समादेशक, ब्रिगेडियर एल.पी. कॉलिन्स, डीएसओ, ओबीई के कुशल नेतृत्व में 40 जीसी के पहले बैच ने 01 अक्टूबर 1932 से देहरादून में उपलब्ध संसाधनों के साथ प्रशिक्षण शुरू किया। अकादमी का पहला कोर्स जिसे 'पायनियर्स' कहा जाता है , में एस एच एफ जे मानेकशॉ (सैम) (भारत), स्मिथ डन (बर्मा) और मोहम्मद मूसा (पाकिस्तान) शामिल थे, जो बाद में अपने-अपने देशों के सेना प्रमुखों के पद तक पहुंचे।
फील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवुड, बैरोनेट जीसीबी, जीसीएसएस, सीसीएमए, डीएसओ, तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ इंडिया, जिनके नाम पर मुख्य भवन और इसके केंद्रीय हॉल का नाम रखा गया, ने 10 दिसंबर 1932 को प्रथम सत्र के समापन से एक दिन पूर्व अकादमी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भारतीय और यूरोपीय अतिथियों ने भाग लिया। इस ऐतिहासिक घटना का सबसे बड़ा गौरव सर फिलिप चैटवुड का उद्घाटन भाषण था, जिसे अकादमी के पवित्र हॉल में दिया गया था । इस हॉल को बाद में उनके नाम पर 'चैटवुड हॉल' के रूप में नामित किया गया था। उनके उत्साहजनक- संबोधन का एक अंश अमर हो गया जिसको अकादमी ने आदर्श – वाक्य के रूप में आत्मसात कर लिया । चैटवुड का यह मूल-मन्त्र भारत के प्रत्येक सैन्य प्रतिष्ठान में आज तक गुंजायमान है जो अधिकारियों को उनके कर्तव्य और सम्मान के लिए प्रेरित करता है। यह इस प्रकार है :-
" आपके देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण हमेशा और हर बार सर्वप्रथम है ।
फिर है आपके सैनिकों का सम्मान, कल्याण और सुविधा,
आपकी अपनी सुविधा, आराम और सुरक्षा हमेशा और हर बार आखिर में आते हैं ।