संक्षिप्त इतिहास

शान्तिकाल की अवधि में, भारत में, ‘सैपर्स एण्ड माइनर्स’ के एक छोटे टेलीग्राफ प्रशिक्षण दल के अतिरिक्त, कोई मुख्य सिग्ननल यूनिट अस्तित्व मे नहीं था | सन 1904 में, कमांडर-इन-चीफ, लार्ड किचनर ने, अपनी योजना ‘द प्रिपरेशन ऑफ द आर्मी इन इंडिया फॉर वार’ में, सिग्नल व्यवस्था की असंतोषजनक स्थिति पर अपनी चिन्ता वयक्त की थी | उन्होने प्रस्ताव रखा कि चार टेलीग्राफ कम्पनियों, जिनमे प्रत्येक में 120 सैनिक हों, का गठन किया जाना चाहिए | इन टेलीग्राफ कम्पनियों के गठन को अंततः स्वीकृति, सन1908 के अंत कि अवधि मैं प्रदान की गई, परंतु उसे कभी भी निष्पादित नहीं किया गया |

किस प्रकार से अग्रिम क्षेत्रों में संचार सेवा को परिष्कृत किया जाए, सेना मुख्यालय में यह सन 1904 से गहन विवाद का विषय बना हुआ था; परंतु वित्तीय अभाव तथा इससे भी विशेष यह अनिश्चितता, कि इंग्लैंड मैं किस प्रकार का संगठन स्वीकार किया जाएगा, के कारण किसी निश्चित प्रकार के प्रस्तावों का सूत्रधार नहीं किया जा सका | अंततः मई 1909 मे, इंग्लैंड मे गठित की गई एक कमेटी की, ‘संचार प्रणालियों के सामंजस्य आदि’ की अग्रिम प्रतिलिपि प्राप्त की गई थी | इस रिपोर्ट की प्राप्ति पर, शिमला में, इस रिपोर्ट पर विचार करने, तथा अंत में यह रिपोर्ट करने के लिए कि भारत की आवश्यकताओं के लिए किस प्रकार का संगठन सर्वोपयुक्त रहेगा, एक कमेटी का त्वरित गठन किया गया | कमेटी कि अध्यक्षता, चीफ ऑफ स्टाफ के ट्रेनिंग तथा स्टाफ ड्यूटीज के सब डिवीसन के प्रभारी अधिकारी, कर्नल जे. हेडलम, डी. एस. ओ., द्वारा की गई |

कमेटी ने एक अन्तिरिम रिपोर्ट में, सन1908 में अनुमोदित की गई, चार टेलीफ़ोन कम्पनियों को चार डिविसनल सिग्नल कंपनी के स्वरूप में गठित करने की संस्तुति की गई | कमेटी की अंतिम रिपोर्ट, 26 अगस्त 1909 के दिन प्रस्तुत की गई, जिसमें उन्होने यह संस्तुति की कि, सेना मुख्यालय स्टाफ में एक अतिरिक्त प्रवर स्टाफ अधिकारी कि नियुक्ति, जिसे युद्ध में विविध संचार साधनों का अध्ययन करने तथा यूनिटो के प्रशिक्षण को समन्वित करने का प्रभार सौंपना; पृथक, सिग्नल यूनिटों को गठित कर विद्यमान कोर ऑफ सैपर्स एण्ड माइनर्स के साथ सम्बद्ध करना; प्रत्येक प्रगामी सैन्य-दल (line of advance) के लिए आर्मी सिग्नल कम्पनी की संभावित व्यवस्था; प्रत्येक युद्धक्षेत्र में कमांडरों तथा अग्रिम स्थित कैवेल्लरी के मध्य संचार अनुरक्षण करने में समर्थ वायरलेस कम्पनी; तथा फील्ड आर्मी के प्रत्येक डिविजन को एक सिग्नल कम्पनी आवंटित करना | अर्थवयस्था की अवस्थिति के कारण यह प्रस्तावित किया गया कि प्रारंभ में केवल चार डिविजनल सिग्नल कंपनियाँ तथा एक वायरलेस कम्पनी को गठित किया जाए तथा एक स्टाफ अधिकारी उपलब्ध कराया जाए | इसमें, ‘सैपर्स एण्ड माइनर्स’ के दो विद्यमान सेक्शनों तथा विद्यमान सिग्नेलिडग स्कूल तथा निरीक्षण स्टाफ की समाप्ति का समर्थन किया गया | यह प्रतीत होता है कि यूनिटों के पूर्णत: प्रशिक्षित हो जाने पर, डिवीजनल सिग्नल कम्पनी के कमांडर, डिवीजन के क्षेत्र में स्थित यूनिटों के विजुअल संकेतन प्रशिक्षण को नियंत्रित कर सकते थे |

 

  मेजर जनरल एस. एच. पॉवेल, सी. बी.

वॉयसरॉय-इन-कॉउन्सिल ने कमेटी के प्रस्तावों कॉ सम्पूर्ण रूप से स्वीकार किया । 4 अगस्त 1910 कॉ लन्दन स्थित ‘सेक्रेटरी फॉर स्टेट’ के लिए जब रिपोर्ट प्रेषित की जा रही थी, कॉउन्सिल ने यह अभिव्यक्त किया कि कमांडर-इन-चीफ़ उत्सुक हैं कि नया संगठन 1910-11 के अंत तक सुचारु रूप से पूर्णत: क्रियाशील हो जाना चाहिए । कॉउन्सिल की अंतिम संस्तुति कहती है, “हम संतुष्ट हैं कि प्रस्तावित योजनाओं में यह संस्तुतियों कि गयी; इस महत्त्वपूर्ण सैन्य-सेवा योजना की पूर्णा संभावित मितव्यवता सहित व्यवस्था कति है तथा इसका शीघ्र सम्मिलित किया जाना सेना की युद्ध में निपुणता के किए आवश्यक है । अतः हम इसे प्रबल रूप से ‘योअर लॉर्डशिप’ के अनुमोदन हेतु संस्तुति करते हैं, जिसे टेलीग्राम द्वारा प्राप्त होने पर हमें प्रसन्नता होगी, ताकि आवश्यक प्रारम्भिक कार्यवाहियों कॉ कार्यान्वित किया जा सके । यह विशेषतः महत्त्वपूर्ण है कि इन विषयों पर कार्य करनेवाले स्टाफ अधिकारी की नियुक्ति शिघ्रातिशीघ्र की जाए । “21 सितम्बर 1910 कॉ सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ने वॉयसरॉय को निम्नलिखित टेलीग्राम कलकत्ता में प्रेषित किया, आप का गोपनीय संदेश 87 दिनांक 4 अगस्त अन्तिम वर्ष । मैं “सिग्नल कम्पनियों की योजना अनुमोदित करता हूँ ।“

21 अक्टूबर 1910 को, लेफ्टिनेन्ट कर्नल एस. एच. पॉवेल, आर. ई., को शिमला में, डायरेक्टोरेट ऑफ द जरनल स्टाफ में, ट्रेनिंग ऐंड स्टाफ ड्यूटीज़ शाखा के निदेशक, ब्रिगेडियर जनरल जे. हैडलैम के अधीन, जरनल स्टाफ ऑफिसर, प्रथम श्रेणी नियुक्त किया गया । पॉवेल सन 1908 के युद्धभ्यासों में भारत में, समस्त अंतःसंचारण संसाधनों को सम्बद्ध करने के प्रथम प्रयोग के लिए उत्तरदायी रहे थे । विगत कुछ दिनों पूर्व ही उन्हें 1 किंग जाँर्जेस ओन सैपर्स एंड माइनर्स का कमांडेंट नियुक्त किया गया था । ‘सैपर्स एंड माइनर्स’ के साथ व्यतीत किए गए वर्ष उनकी ‘सेवाकाल के सर्वोत्तम आनन्द’ के दिन थे, तथा कमांडेंट का पद वह था, जो उन्हें सर्वाधिक प्रिय था । लेकिन पद ग्रहण करने से पूर्व ही उन्हें सेना मुख्यालय भेज दिया गया । उन्होने अपने नए कार्य में तन, मन लगा दिया तथा नई सेवा उनके कार्य की सदैव अभारी रहेगी ।


चार सिग्नल कम्पनियों तथा एक वायरलेस सिग्नल कम्पनी की नाभिकी की स्थापना को स्वीकृत किया गया । ये यूनिटें ‘सैपर्स एंड माइनर्स’ की होनी थीं लेकिन कम्पनियों को, सैपर्स एंड माइनर्स कोर से, सम्बद्ध नहीं किया गया; वे स्वतंत्र यूनिटें होनी थी, जिसका कोई समग्र मुख्यालय संगठन नहीं होना था । वास्तव में, सिग्नल यूनिटों तथा ‘कोर ऑफ सैपर्स एंड माइनर्स’ में कोई सम्बन्ध नहीं था ।

नवंबर 1910 तक, यूनिटों को 31 से 34 डिवीज़नल सिग्नल कम्पनी, सैपर्स एंड माइनर्स नामित किया गया तथा इनके कमान अफसर नियुक्त किए गए । ये थे; 31 कम्पनी, कैप्टन एच.एस.ई. फ्रैंक्लिन, 15 लुधियाना सिख; 32 कम्पनी, कैप्टन डबल्यू. एफ़. मैक्सवेल, आर. ई., 3 सैपर्स एंड माइनर्स, 33 कम्पनी, कैप्टन एल. एच. क्यूरीपेल, रॉयल फील्ड आर्टिलरी; 34 कम्पनी, कैप्टन आर. जी. अर्ल, आर. ई., 1 किंग जाँर्जेस ओन सैपर्स एंड माइनर्स को 41 वायरलेस कम्पनी का अफसर कमान नियुक्त किया गया ।

जनवरी 1911 में शिमला में, पॉवेल तथा कम्पनी कमाण्डरों के मध्य एक कान्फ्रेंस आयोजित की गयी, जहां संस्तुति की गयी कि, 31 तथा 32 कम्पनियां फतेहगढ़ में, 33 तथा 34 कम्पनियाँ अहमदनगर तथा 41 कम्पनी रूड़की में अवस्थित की जाएँ । इसको स्वीकृत किया गया, तथा 3 फरवरी 1911 में नई सिग्नल कम्पनियों के गठन के विषय पर एक ‘स्पेशल आर्मी ऑर्डर’ प्रकाशित किया गया । 31 तथा 32 कम्पनियाँ 15 फरवरी को खड़ी की जानी थी; तथा 33, 34 तथा 41 कम्पनियाँ 1 मार्च को । डिवीज़नल सिग्नल कम्पनियों के संस्थापन में 5 ब्रिटिश अधिकारी, 2 भारतीय अधिकारी (सन 1936 से पूर्व में, वी. सी. ओज. को भारतीय अधिकारी के रूप में उल्लेखित किया जाता था), जिनमें प्रशिक्षित किए जा रहे 8 रांगरूटो सहित 44 ब्रिटिश तथा 86 भारतीय अन्य पद थे । ब्रिटिश आरोहित संकेतकों हेतु 6 घोड़े तथा भारतीय लाइनमैनों के लिए 2 टट्टू स्वीकृत किए गए थे । कोई अन्य परिवहन प्राधिकृत नहीं किया गया तथा अधिकारियों लो स्वयं के लिए युद्धास्व उपलब्ध करवाना था ।

प्रत्येक कम्पनी भारतीय सैनिकों के भर्ती, सूचीबद्धता, भरती करना तथा सेवा मुक्ति के लिए, कोर से समकक्ष थी । ब्रिटिश सैनिकों के स्थानांतरण तथा पदोन्नति के लिए सभी कम्पनियों को समूहीकृत किया जाना था; जहां तक भारतीय सैनिकों का प्रश्न है, दोनों आर्मियों को संयुक्त किया जाना था । उस अवधि में भारत मे सेना, दो आर्मी कमांडों में संगठित थी; 31 तथा 32 कम्पनियां नार्दर्न कमांड को तथा 33 तथा 34 कम्पनियाँ सदर्न कमान को आवंटित की गयी थीं । पदोन्नतियाँ तथा कम्पनियों के मध्य स्थानांतरण को, भारत में स्थित एड्ज्यूटेंट जनरल नियंत्रित करते थे । सेना के समस्त कॉम्बैट आर्म्स (Combat Arms) के ब्रिटिश अधिकारी, सिग्नल कम्पनियों में चार वर्षों तक नियुक्ति हेतु उपयुक्त थे; इस अवधि में उन्हें अपनी रेजिमेंटों द्वारा नियुक्त किया जाना आवश्यक था ।

कम्पनियों को ब्रिटिश यूनिटों से ‘इंडिया अनअटैच्ड लिस्ट’ के ‘नॉन डिपार्टमेंटल सेक्शन’ में स्थानांतरित कर तथा भारतीय यूनिटों से अनेक कम्पनियों को गठित किया जाना था । सैपर्स एंड माइनर्स से सिग्नल कम्पनी हेतु, मानकानुसार ट्रेड में योग्यता प्राप्त भारतीय सैनिकों को उनकी जाति अथवा वर्ग को अनपेक्षित कर, स्थानांतरित किया जा सकता था । अन्य को भारतीय सेना की रेजिमेंटों से स्थानांतरित कर किया जाता था । उत्तरवर्ती रिक्त स्थान ब्रिटिश सैनिकों के लिए उसी समान ही भरे जाने थे; परंतु भारतीय सैनिक रंगरूट के रूप में भरती किए जाने थे ।

सिग्नल कोर वर्तमान में अधिकारियों और जे सी ओ/ ओ आर में संगठित है।अधिकारियो को संचार, प्रशासन आदि जैसे सार्वभौमिक रूप से कार्यरत किया जा सकता है, अन्य रैंकों को विभिन्न ट्रेडों में व्यवस्थित किया जाता है जैसे सिग्नल के फोरमैन (एफ ओ एस) और सिग्नल के Yeoman (वाई ओ एस) आदि। अन्य रैंक केवल अपने संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कोर को संरचनात्मक रूप से विभिन्न रेजिमेंटों और कंपनियों में संगठित किया गया है। प्रत्येक ब्रिगेड में एक सिग्नल कंपनी होती है जिसकी कमान उसके साथ जुड़े एक मेजर/लेफ्टिनेंट कर्नल के पास होती है, जो आगे डिवीजनों और कोर सिग्नल रेजिमेंट के अधीन होती है, जिसकी कमान एक कर्नल के पास होती है।