संगठन

 

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान प्राप्त अनुभव, और विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र के महत्त्व को मध्यनज़र रखते हुए 26 फरवरी 1987 को शिवरात्रि के शुभ दिन पर लेफ्टिनेट जनरल ए. के. चटर्जी, परम विशिष्ट सेवा पदक, विशिष्ट सेना पदक के द्वारा कोणार्क कोर की ऑपरेशन ट्राइडेंट तहत स्थापना हुई ।

कोर का गठन 1987 में किया था, लेकिन गठन करने वाली संस्थाओं ने 1965 और 1971 की लड़ाई में पहले ही प्रशंसा और पुरस्कार प्राप्त किए है । 1971 में लड़ी गई लोंगेवाला की प्रसिद्ध लड़ाई कोणार्क कोर की वीरता और बलिदान के साथ-साथ साहस और दृढ संकल्प का प्रतीक है । संसद पर हमले के बाद, कोणार्क कोर ने ऑपरेशन पराक्रम में हिस्सा लिया I कोणार्क कोर भूकंप, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय में जैसे भुज भूकंप, राजस्थान और गुजरात में बाढ़, दक्षिण राज्य केरल में बाढ़ के दौरान नागरिकों को सहायता प्रदान करने में अहम रूप से शामिल रहा है ।

कोणार्क कोर थार, रण, क्रीक और तटीय क्षेत्रों की विशिष्टता को शामिल करते हुए राष्ट्र की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा करता है । इसके अलावा यह राजस्थान और गुजरात राज्यों में समृद्ध जैव –विविधता और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है ।

अत्याधिक तापमान और पानी की कमी के कारण कठोर भू-भाग सबसे बड़ी चुनौती है । इसी कारण, शारिरिक स्वास्थ्य, मजबूत मानसिक क्षमता, उत्कृष्ट  प्रशिक्षण, उपकरणों का रखरखाव जैसे उत्तम बेचमार्क कोणार्क कोर के लिए परम है । संचालन की, जिम्मेवारी के अलावा, कोणार्क कोर नवीनतम पीढ़ी के उपकरणों के प्रयोग के साथ-साथ भारतीय सेना द्वारा नई अवधारणों को अपनाने के लिए निष्ठा से जुड़ा हुआ है ।

भारतीय सेना में इसे ‘डेजर्ट कॉर्प्स’ के रूप में भी जाना जाता है । कोर ने पुरी के कोणार्क सूर्य मंदिर से ‘कोणार्क’ को अपने प्रतिक चिन्ह के रूप में अपनाया है, जो आठ प्रमुख दिशाओं में सूर्य के प्रकाश का एक प्रतीकात्मक संकेत है तथा इस कोर का सन सिटी जोधपुर के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित होता है ।