इतिहास

परिचय

1.         सेना सेवा कोर (ए एस सी) भारतीय सेना की सबसे पुरानी व बड़ी प्रशासनिक सेवा है। ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय से बहुत ही साधारण शुरुआत के बाद इसने अब तक लगातार अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार किया है और अब यह थल, जल और वायु क्षेत्रों में भी काम करती है। कोर ने तीनों महाद्वीपों में सूखे रेगिस्तानों से लेकर बर्फीले पहाड़ों, जंगलों व उच्चतुंगता क्षेत्रों तक पर लड़ी गई कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया है। लंबे समय से चल रही इस कोर की संरचना में लगातार कई बदलाव आते रहे है और अंतत: मौजूदा एकीकृत ए एस सी बटालियनों का गठन किया गया। कोर हर दृष्टिकोण से अध्ययन व चिंतन के लिए कई रोचक पहलू प्रस्तुत करती है।

उत्पत्ति

2.         सेना-रसद विभाग (Commissariat Department)  इस कोर की शुरुआत वर्ष 1760 में बंगाल, मद्रास व बॉम्बे प्रेसिडेंसी में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेनाओं के प्रशासनिक घटकों जिन्हें कमिसारियत अथवा सेना रसद विभाग के नाम से जाना जाता था, के रुप में हुई। इन सेनाओं की जरुरतों के आधार पर कमिसारियत अथवा सेना- रसद विभाग की नफरी घटती-बढ़ती रहती है और इसके कार्यों की प्रकृति में भी काफी बदलाव हुए। सेना के नियमित कमिशरियेट विभागों की स्थापना बंगाल व मद्रास प्रेसिडेंसियों में वर्ष 1810 में व बॉम्बे में वर्ष 1811 में की गई थी। यह विभाग सेना की खाद्य, परिवहन व घोड़ों संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यवस्था करते थे और इसके लिए वे अधिकतर संविदाकारों पर निर्भर रहते थे।

3.         विभाग के नियंत्रण में व इसकी कार्य प्रणाली में  कई परिवर्तन किए गए। कुछ प्रेसिडेंसियों में उक्त विभाग पर मिलिट्री बोर्ड का नियंत्रण था व कुछ पर कमिशरी जनरल का नियंत्रण था। वास्तव में कमिशरी जनरल की नियुक्ति सबसे पहले 1760 में की गई परंतु वर्ष 1773 में यह पद समाप्त कर दिया गया। वर्ष 1867 में फारसी युद्ध के बाद एक भू-परिवहन कोर की स्थापना की गई। हालांकि काफी समय तक यह निष्क्रिय रही, परंतु फिर भी इसका अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ।

4.         सेना-रसद विभागों का विलय   तीनों प्रेसिडेंसियों के नियंत्रणाधीन अलग-अलग कमिशरियेट विभागों का वर्ष 1878 में विलय किया गया व इस सगंठन का नाम वर्ष 1901 में बदलकर “आपूर्ति परिवहन कोर” रखा गया। अब तक, इन विभागों में गैर-योद्धा कार्मिकों को तैनात किया जाता था। कार्मिकों का सैन्यीकरण नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स (NWFP) में ऑपरेशनों से प्रारंभ हुआ जिसमें कोर ने भी भाग लिया। वर्ष 1902 में कोर को इसका पहला मेकैनिकल ट्रांसपोर्ट (MT) वाहन जारी किया गया ।

5.         भारतीय सेना सेवा कोर का नामकरण रॉयल” की उपाधि    कोर का विस्तार तीव्रता से हुआ और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान  इसने विदेश में कई लड़ाईयों में हिस्सा लिया। इस अवधि के दौरान इसने सशस्त्र सेना के स्थाई  व अभिन्न अंग का दर्जा और समाघात बल की विशेषताएं हासिल कर लीं। कोर के शानदार प्रदर्शन के फलस्वरुप वर्ष 1923 में इसका नाम “भारतीय सेना सेवा कोर” रखा गया व वर्ष 1935 में इस अपने नाम से पहले “रॉयल” की उपाधि का प्रयोग करने की अनुमति प्रदान की गई और यह आर आई ए एस सी (RIASC) के नाम से जानी जाने लगी। इस विशिष्टता के कारण कोर कार्मिकों को दाहिने कंधे पर “लाल लैनयार्ड” पहनने की अनुमति मिल गई। इस समय इम्पीरियल साइफर व गेटिस के साथ एट-प्वाइंटेड स्टार (eight pointed star) वाले नए कैप बैज की शुरुआत की गई। इस बैज के आदर्श वाक्य का अर्थ था “बुरा सोचने वाले का बुरा हो”।

प्रारंभिक घटनाक्रम   

6.         प्रथम विश्व युद्ध     हमारी कोर ने निम्नलिखित के साथ प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया:-

            (क)      अभियान ए       -           फ्रांस व मिस्र में सैन्य सेवा के लिए

            (ख)      अभियान बी      -           पूर्व अफ्रीका में रक्षात्मक अभियान

            (ग)‌       अभियान सी     -           पूर्व अफ्रीका में आक्रमणकारी अभियान

            (घ)       अभियान डी      -           मेसोपोटमिया अभियान बल

7.         द्विती विश्व युद्ध  -    द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोर के संगठन में काफी परिवर्तन हुए जिससे इसकी नफरी में बढ़ोतरी हुई व इसके कार्यक्षेत्र में भी विस्तार हुआ। कोर के कार्मिकों का पूरी तरह से सैन्यकरण कर दिया गया व परिवहन पूरी तरह से यंत्रीकृत (मैकेनाइज्ड) हो गया। यंत्रीकरण (Mechanisation) के परिणामस्वरुप ईंधन की आपूर्ति करना कोर की जिम्मेवारी हो गयी। वायु सेना के विकास के फलस्वरुप कोर को वायु सेना को विमानन ईंधन भी प्रदान करना पड़ा। जिससे अंतर-सेवाओं में भी इसके योगदान की शुरुआत हो गई। इस सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह था कि बर्मा के जंगलों में लड़ रहे ट्रूपों को आपूर्ति पहुंचाने के लिए कोर ने हवाई मार्ग से भी संचालन प्रारंभ कर दिया।

8.         कोर की अलग-अलग जिम्मेवारियों को पूरा करने के लिए कई यूनिटों का गठन किया गया। इनमें सप्लाई कम्पनियां, सप्लाई प्लाटून, ट्रांज़िट प्लाटून, कोल्ड स्टोरेज यूनिटें, फ्यूल ऑएल व लुब्रिकैंट्स (FOL) यूनिटें, विभिन्न प्रकार की सामान्य व विशेषज्ञ परिवहन यूनिटें, जल-थलीय कम्पनियां, हवाई प्रेषण कम्पनियां व बड़ी संख्या में पशु परिवहन यूनिटें शामिल थी। इन यूनिटों को जापान से लेकर यूरोप तक दूर-दूर तक फैले ऑपरेशनल क्षेत्रों में तैनात किया गया। इन यूनिटों ने सेना, नौसेना व वायुसेना के अलग- अलग व संयुक्त ऑपरेशनों में सहायता प्रदान की।

9.         यांत्रिक परिवहन यूनिटों ने 730 मील से अधिक फारसी ग्रामीण इलाकों में रुसी लोगों के लिए सामान लाने-ले जाने के लिए सराहनीय कार्य किया। स्वदेश के निकट अराकान अभियान में आर आई ए एस सी (RIASC) एक महत्वपूर्ण अंग था। जहां आर आई ए एस सी कॉनवाय ने शत्रु से घिरे ट्रूपों को सारा जरुरी सामान शत्रु का सामना करते हुए पहुंचाया। आर आई ए एस सी ने जवानों व सामान को लंबे व दुर्गम रास्तों से होते हुए चौदहवीं सेना (Fourteenth Army) तक पहुंचाया। हवाई प्रेषण कम्पनियों ने जनरल विंगेट के लॉन्ग रेंज पेनिट्रेशन ग्रुप को लगातार सहायता प्रदान की व बर्मा की पहड़ियों के आस-पास के इलाके में चौदहवीं सेना के मुख्य युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, हर प्रकार के युद्ध क्षेत्र में व अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में तैनात रहते हुए कोर ने काफी व्यापक व तकनीकी अनुभव प्राप्त किया। धीरे-धीरे कोर में तैनात कई ब्रिटिश अफसरों का स्थान भारतीय अफसरों ने ले लिया और युद्ध की समाप्ति तक कोर का भारतीयकरण हो चुका था।

10.       पुरस्कार    -     द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोर के कार्मिकों ने निम्नलिखित पुरस्कार जीते:‌-

(क)      शौर्य पुरस्कार     4 डी एस ओ, 25 एम सी, 67 एम एम, 4 आई डी एम व 34 आई डी एस एम

(ख)      सराहनीय सेवा पुरस्कार   4 सी बी, 8 सी आई ई, 13 सी बी ई, 60 ओ बी ई, 161 एम बी ई, 15 बी ई एम, 185 ओ बी आई, 5 जागीर व 7 विदेशी अलंकरण।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद

11.       केरिंग कोर, कोर ऑफ क्लर्कस ड़ाक सेवाओं का विलय   स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कोर के पास सप्लाई, पशु परिवहन, यांत्रिक परिवहन, एफ ओ एल व हवाई प्रेषण (Air Despatch) विंग थी। हालांकि देश के विभाजन व इसके परिणामस्वरुप बलों के विभाजन के कारण इनकी संख्या में कमी आ गई फिर भी इन सभी विंग्स के केंद्रों को बनाए रखा गया और पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाओं की व्यवस्था की गई। कश्मीर में ऑपरेशनों के कारण इनका और अधिक विस्तार हो गया। वर्ष 1948 में इंडियन केटरिंग कोर का कोर के साथ विलय कर दिया गया और इसके तुरंत बाद इंडियन आर्मी कोर ऑफ क्लर्क का भी विलय हो गया जो खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं द्वितीय विश्व युद्ध के समय काम कर रही थी उन पर चिकित्सा कोर का नियंत्रण था। युद्ध के समय इनमें से अधिकतर प्रयोगशालाओं को विघटित कर दिया गया था परंतु 1948 में आर आई ए एस सी (RIASC) के भाग के रुप में खाद्य निरीक्षण संगठनों के रुप में इन्हें फिर से गठित किया गया। इसी प्रकार से सेना ड़ाक सेवा, जिसे कश्मीर ऑपरेशनों के दौरान अपनी गतिविधियां बढ़ानी थी, उसे भी वर्ष 1950 में कोर के साथ संबद्ध कर दिया गया और वर्ष 1972 में इसके द्वारा एक अलग स्वतंत्र कोर बनाई गई।

12.       रॉयलकी उपाधि को छोना     26 जनवरी 1950 को जब भारत एक गणराज्य बन गया तो कोर ने अपनी उपाधि “रॉयल” छोड़ दी और सेना सेवा कोर बन गई। 08 दिसंबर 1950 को भारत के राष्ट्रपति ने कोर को ए एस सी बैज में राष्ट्रीय संप्रतीक का प्रयोग करने व उसकी सेवाओं के सम्मान के रुप में लाल लैनयार्ड को दाहिने कंधे पर पहनने के लिए मंजूरी प्रदान की। 08 दिसंबर 1952 को पहला कोर दिवस मनाया गया और तब से यह हमारे कोर दिवस के रुप में ही मनाया जाने लगा।

13.       स्वतंत्रता के बाद के युद्ध ऑपरेशन   स्वतंत्रता के बाद से सेना सेवा कोर ने कश्मीर व नागालैंड में ऑपरेशनों में, चीनी सेना के खिलाफ वर्ष 1962 में लद्दाख व नेफा में 1965 व 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया है। इनमें से अधिकतर लड़ाईयां आकस्मिक रुप से ही लड़ी गई जिनकी तैयारी के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाया। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद कोर ने आवश्यकता के समय शानदार प्रदर्शन किया। सिविल वाहनों की बड़ी संख्या में जबरन भर्ती व उन पर प्रभावी नियंत्रण इस अवधि के दौरान एक बड़ी उपलब्धि थी।  सेना सेवा कोर ने कई कम तीव्रता वाले ऑपरेशनों व प्रतिविद्रोहिता ऑपरेशनों के लिए संभारिकी सहायता प्रदान की। इसने श्रीलंका में भारतीय शांति स्थापना बलों के ऑपरेशनों में भी भाग लिया। कोर ऑपरेशन मेघदूत व ऑपरेशन रक्षक के लिए तैनात हमारे ट्रूपों की आपूर्ति व परिवहन संबंधी आवश्यकताओं को बहुत ही कारगर ढ़ंग से पूरा करती रही है। ऑपरेशन विजय के दौरान कोर ने हमारे बहादुर सैनिकों को उनकी जरुरत के समय कारगिल सेक्टर के दुर्गम इलाकों में महत्वपूर्ण संभारिकी सहायता प्रदान की। 874 ए टी बटालियन को ऑपरेशन विजय में उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए यूनिट प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।

14.       विदेश में सेवा    कोर ने सयुंक्त राष्ट्र के तत्वाधान में कोरिया, मिस्र व कॉन्गो में अपनी सेवाएं प्रदान की।  वर्ष 1954 में अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण आयोग (International Control Commission) के भाग के रुप में इंडो-चीन में सेना सेवा कोर का एक सैन्य दल भेजा गया। इन सभी स्थानों पर कोर की यूनिटों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। करीब तीन दशको के अंतराल के बाद वर्ष 1993 से भारतीय सेना ने फिर से संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना ऑपरेशनों के लिए अपने सैन्य दलों को भेजना शुरु किया। इस निर्णय के बाद सेना सेवा कोर के सैन्यदलों को संयुक्त राष्ट्र बल के लिए भारतीय संभारिकी सैन्य दल के भाग के रुप में मोजाम्बीक (UNOMOZ) और भारतीय शांति स्थापना सैन्य दल के रुप में सोमालिया (UNOSOM) भेजा गया। दोनों सैन्य दलों ने अपनी परंपराओं के अनुरुप अपनी उत्कृष्टता का परिचय दिया है।

15.       विविधि गतिविधियां     वर्ष 1963 में एक डिवीजन के सेना सेवा कोर के कर्मीदल को ए एस सी बटालियन में पुनर्गठित किया गया। इस प्रकार कोर की विभिन्न शाखाओं को पहली बार एक सुसंबद्ध कमान के रुप में एकीकृत किया गया। मई 1975 में, एक कर्नल की अध्यक्षता में संपर्क स्थापित करने संबंधी ड्यूटियों के लिए पेट्रोलियम व रसायन मंत्रालय में एक पेट्रोलियम सेल का गठन किया गया।  

16.   सरल कारगर रुप देना   जुलाई 1975 में सब-एरिया और एरिया मुख्यालय में आपूर्ति व परिवहन स्थापना को पुन:गठित किया गया।  जिन स्टेशनों पर सब-एरिया एस टी को समाप्त किया गया वहां एरिया मुख्यालय को सी ए एस सी (लेफ्टिनेंट कर्नल) से डी डी एस टी (कर्नल) में अपग्रेड किया गया। डी डी एस टी का कार्यालय आर्थिक सर्वेक्षण व मार्केट रिसर्च के उद्देश्य के लिए स्थापित प्रकोष्ठ (सेल) और निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले आर्थिक प्रतिबंधों के वैज्ञानिक व सांख्यिकीय अध्ययन की दृष्टि से स्थापित किया गया था। ऐसे सब-एरिया में जो सेना मुख्यालय से दूर स्थित है, संविदाओं को अंतिम रुप देने व परामर्शी कार्यो के लिए कम नफरी वाली स्थापनाओं को बरकरार रखा गया। अन्य प्रमुख बदलाव इस प्रकार से है:-

(क)      ए एस सी सेन्टर (नॉर्थ)  के करीब 29 वर्षो तक मेरठ में रहने के बाद फरवरी 1976 में इसे गया स्थानांतरित कर दिया गया।

(ख)      जून 1976 में हवाई अनुरक्षण सेट-अप को सरल व कारगर रुप दिया गया। सेना हवाई परिवहन संगठन (AATO) व रियर एयरफील्ड आपूर्ति संगठन (आर ए एस ओ) को विघटित किया गया और ए एस सी बटालियनों (हवाई अनुरक्षण) का गठन हुआ। वर्ष 1992 में इस की समीक्षा के बाद, हवाई अनुरक्षण सेट-अप की नफरी कम कर दी गई है।

(ग)       सितंबर 1976 में सप्लाई व एफ ओ एल कवर को फिर से पुनर्गठित किया गया और सप्लाई डिपो को अपग्रेड किया गया। सप्लाई व एफ ओ एल कवर का पुनर्गठन एक सतत प्रक्रिया है।

(घ)       वर्ष 1976 में अधिकतर स्वतंत्र परिवहन प्लाटूनों व कम्पनियों (सिविल जीटी सहित) को  ए एस सी बटालियनों (एम टी) में समूहबद्ध किया गया ।

(च)       अगस्त 1977 में मुख्यालय कोल इंडिया लिमिटेड, कोलकाता में एक कोल सेल की स्थापना की गई जिसके प्रमुख एक कर्नल थे। विभिन्न कोयला खानों/ पिटहेड्स में काम करने के लिए उसी समय चार प्रेषण व निरीक्षण टीमों (डी आई टी) जिनमें से प्रत्येक के प्रमुख एक मेजर थे, के लिए भी मंजूरी दी गई।

(घ)       1990-91 से लेकर अब तक विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट व ऐसे अन्य अध्ययनों के आधार पर कई अन्य संगठनात्मक परिवर्तन किए गए हैं। कोर के पशु परिवहन प्राधिकार में भी कमी की गई है।

(ज)      01 मई 1999 को ए एस सी स्कूल बरेली के संचलन व ए एस सी सेन्टर (साउथ) व आर्मी स्कूल ऑफ मेकैनिकल ट्रांसपोर्ट के साथ इसके विलय के बाद, इसका नाम ए एस सी सेन्टर व कॉलेज (बंगलौर) रखा गया।

(झ)      31 मार्च 2017 को ए एस सी सेन्टर (नॉर्थ) को गया से बेंगलुरु स्थानांतरित करने का काम पूरा हो गया।

17.    नया नाम    कोर का नाम बदलकर “सेना सेवा कोर” कर दिया गया है।