5‘आर वी सी – 240 वर्षों से देश की सेवा में’
रिमाउंट वेटरिनरी कोर(आर वी सी) भारतीय सेना की सबसे समर्पित सर्विसेज में से एक है जिसका 240 वर्षों का गौरवशाली इतिहास एवं शानदार वर्तमान है। पशु आधारित संभारिकी एवं कॉम्बैट टीमों को संक्रियात्मक सहायता उपलब्ध कराने के लिए सतत सेवा प्रदान करने में इस कोर का उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है। इस कोर ने भिन्न-भिन्न भूमिकाओं में उच्च कीर्तिमान स्थापित किए हैं जिनमें पशुओं की ब्रीडिंग, उन्हें पालना, प्रशिक्षित करना, उनका स्वास्थ्य प्रबंधन, उपचार, प्रतिरक्षण एवं सैन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें सामरिक रुप से नियोजित करना शामिल है।
वर्तमान समय के रिमाउंट वेटरिनरी कोर (आर वी सी) की उत्पत्ति 1974 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित एक बोर्ड से हुई जिसे घोड़ों के लिए बढ़ती मांग को पूरा करने के उद्देश्य से स्थानीय रुप से घोड़ों की ब्रीडिंग के लिए स्थापित किया गया था क्योंकि घोड़े आसानी से उपलब्ध नहीं होते थे। तब से आर वी सी लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर रहा है तथा राष्ट्र की उम्मीदों पर खरा उतरा है। दोनों विश्व युद्धों में इस कोर ने ब्रिटिश साम्राज्य के अंग के रूप में भाग लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आर वी सी ने हमारे पड़ोसी शत्रु देशों के साथ हुए विभिन्न युद्धों में एवं विद्रोह तथा सीमा पार से समर्थित उग्रवाद से लड़ने में अहम योगदान दिया है। आर वी सी ने विभिन्न ऑपरेशनों में अहम उपलब्धियाँ हासिल की हैं जिनमें 1947 में जम्मू-कश्मीर, 1962 में एन ई एफ ए(NEFA), 1965 एवं 1971 के भारत-पाक युद्ध तथा 1999 का कारगिल युद्ध शामिल हैं।
“सैन्य पशु प्रशिक्षण का भविष्य तकनीकी नवाचार पर आधारित होगा”

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दिसम्बर 1779 |
बंगाल में स्टड विभाग की स्थापना। पशुओं की नियंत्रित ब्रीडिंग एवं इम्पीरियल आर्मी की माउंटिंग के लिए विनियम अपनाए गए। |
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1793 |
प्रेसीडेंसी स्टड की स्थापना |
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1794 |
घोड़ों की नस्ल उन्नत करने के लिए अधीक्षण बोर्ड का गठन |
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1826 |
भारतीय सिविल सेवा में प्रेसिडेंसी स्टड(1793 में स्थापित) से भारतीय पशुचिकित्सा विभाग का गठन किया गया। |
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1870 |
स्टड विभाग का विभाजन करके अश्व ब्रीडिंग विभाग एवं सेना ब्रीडिंग विभाग की स्थापना की गई। |
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1875 |
सहारनपुर में सेना रिमाउंट विभाग की स्थापना की गई। |
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1884 |
सेना पशुचिकित्सा विभाग की स्थापना। |
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14 दिसम्बर 1920 |
सेना पशुचिकित्सा कोर (भारत) की स्थापना हुई। वर्तमान में 14 दिसंबर को आर वी सी कोर दिवस के रुप में मनाया जाता है। |
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1925 |
सेना पशुचिकित्सा कोर (भारत) का पुनर्नामकरण भारतीय सेना पशुचिकित्सा कोर के रुप में किया गया। |
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1935 |
स्वदेशीकरण की शुरुआत |
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15 अप्रैल 1947 |
पशुचिकित्सा कोर एवं रिमाउंट विभाग का विलय करके भारतीय सेना रिमाउंट एवं पशुचिकित्सा कोर की स्थापना की गई। |
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अगस्त 1947 |
देश का विभाजन होने पर भारतीय सेना रिमाउंट एवं वेटरिनरी कोर एवं मिलिट्री फार्म्स विभाग की परिसंपत्तियों एवं कार्मिकों का बंटवारा करके इंडियन रिमाउंट वेटरिनरी एवं फार्म्स कोर का गठन किया गया। इंडियन रिमाउंट, वेटरिनरी एवं फार्म्स कोर एवं पाकिस्तान रिमाउंट, वेटरिनरी एवं फार्म्स कोर के बीच सैद्धांतिक रुप से 2:1 के अनुसार परिसंपत्तियों एवं कार्मिकों का बंटवारा किया गया (परंतु अधिकतर स्टड एवं अस्पताल पाकिस्तान में स्थित थे)। |
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1950 |
इंडियन रिमाउंट, वेटरिनरी एवं फार्म्स का पुनर्नामकरण वेटरिनरी एवं फार्म्स कोर के रूप में किया गया। |
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मई 1960 |
रिमाउंट एवं वेटरिनरी कोर एवं मिलिट्री फार्म्स कोर को अलग करके स्वतंत्र कोर बना दिए गए। |
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जून 2007 |
एकीकृत मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय(सेना) में उपमहानिदेशक, आर वी सी के मौजूदा पद को अपर महानिदेशक, आर वी एस के रूप में अपग्रेड करके लेफ्टिनेंट जनरल के रैंक में महानिदेशक, आर वी एस के पद का सृजन किया गया। |
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| 29 May 1884 | 14 Dec 1920 |
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| 01 Oct 1947 | 01 May 1960 |
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| 11 Dec 2006 | |
ऑपरेशनल इतिहास
प्रथम विश्व युद्ध में वेटरिनरी कोर ने फिलीस्तीन एवं रुस में तैनात सैन्य पशुओं को पशुचिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई। उस समय इस कोर के कार्मिकों के लिए एकमात्र प्राधिकृत हथियार खुखरी था। द्वितीय विश्व युद्ध में आर वी सी कोर को राईफल, संगीन, कार्बाइन मशीन जैसे हथियार प्राधिकृत किए गए तथा पशुचिकित्सा कार्मिकों को उनके पेशेवर प्रशिक्षण के अतिरिक्त युद्ध के दौरान टीकाकरण का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
इस कोर के कार्मिकों ने निम्नलिखित लड़ाइयों में भाग लिया:-
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1919-24 |
वजीरिस्तान |
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1921 |
वाना पर पुन कब्जा |
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1923 |
रजमैक पर कब्जा |
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1929 |
नराई ऑपरेशन |
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1930 |
खजूरी ऑपरेशन |
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1930-32 |
पेशावर जिला ऑपरेशन |
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1930 |
फ्रंटियर ऑपरेशन |
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1933 |
चित्राल गैरीसन ऑपरेशन |
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1933 |
खोस्त कुर्रम ऑपरेशन |
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1933 |
मोहमंद ऑपरेशन |
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1936-41 |
वजीरीस्तान ऑपरेशन |
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1939-45 |
द्वितीय विश्व युद्ध फ्रांस, मध्य पूर्व, पाइफोर्स एवं इटली |
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1939-45 |
द्वितीय विश्व युद्ध, बर्मा एवं असम |
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1947-49 |
जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन |
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1955-56 |
नागा हिल्स |
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1961 |
गोवा ऑपरेशन |
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1962 |
भारत-चीन युद्ध(नेफा) |
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1965 |
भारत-पाक युद्ध |
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1971 |
भारत-पाक युद्ध |
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1999 |
जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन(ऑपरेशन विजय) |

कोहिमा में युद्ध स्मारक पर अंकित सैनिकों के नाम द्वितीय विश्व युद्ध
कोर का आदर्श वाक्य
कोर को सौंपी गई ड्यूटियों एवं जिम्मेदारियों के अनुरूप आर वी सी का आदर्श वाक्य है “पशु सेवा अस्माकम् धर्म:”।
अर्थात ‘पशु सेवा हमारा कर्तव्य है’।
कोर का ध्वज

कोर के ध्वज में पीले रंग के ऊपर मैरुन रंग की दो क्षैतिज पट्टियाँ हैं जिनके बीच में कोर का अधिचिह्म अंकित है। ध्वज में मौजूद मैरुन रंग रिमाउंट्स को तथा पीला रंग पशुचिकित्सा के पहलू को दर्शाता है।
ध्वज प्रस्तुतिकरण

राष्ट्र के प्रति महान सेवा के सम्मानस्वरूप भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने 21 दिसम्बर 1989 को आर वी सी कोर को ध्वज(कलर्स) प्रदान किया।

आर वी सी सेंटर एवं कॉलेज में परिचय परेड का दुर्लभ फोटो

शॉर्ट सर्विस कमीशंड अफसरों का प्रथम बैच (1953) आर वी सी सेंटर एवं कॉलेज के कमांडेंट कर्नल के वी सिंह के साथ
(आर डेनियल, सी एस नायडू, एस एस चोपड़ा, जी एस पेरहार, एस एन श्रीवास्तव, ई पार्थसारथी, एस एस गिल, आर के आर बालासुब्रम्णयम, जे डी कथूरिया)

खच्चरों के साथ दिनचर्या की चुस्त शुरुआत

“पहला कदम”
कर्नल पी एल नेगी. जिन्होनें डिपो की स्थापना की, गौशाला(हेमपुर) में ट्रेन से उतरते हुए।

सैन्य परिवहन के रुप में ऊंट रवानगी को तैयार

मेजर जनरल एस एन श्रीवास्तव, अपर महानिदेशक, आर वी एस जोजिला में ए टी ऑपरेशनों का निरीक्षण करते हुए।
