भारत में आर्टिलरी का प्रयोग किए जाने का पहला वर्णन 1368 में असेनी की लड़ाई के दौरान मिलता है। दक्कन में मोहम्मद शाह बहमनी के नेतृत्व में बहमती राजाओं ने आर्टिलरी का प्रयोग किया था ।
5 (बॉम्बे) माउंटेन बैट्री की स्थापना गोलंदाज बटालियन बॉम्बे फूट आर्टिलरी को आठवी कंपनी के रूप में 28 सितंबर 1827 को की गई थी । वर्तमान में यह कंपनी 57 फील्ड रेजीमेंट का अंग है । इस प्रकार 28 सितंबर को गनर दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
1857 के पाश्चात अधिकतर यूनिटो को विघटित कर दिया गया तथा केवल गोलंदाज बैट्री को अफगान युद्ध के दौरान ऊबड़ खाबड़ नॉर्थ वेस्ट फ़्रोंटिएर में तैनात करने के लिए रखा गया था ।
आर्टिलरी स्कूल की स्थापना काबुल में 1923 में की गई थी । माउंटेन आर्टिलरी ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना देहारादून में की गई जिसे बाद में लखनऊ एवं इस के बाद अंबाला स्थानांतरित कर दिया गया । फील्ड आर्टिलरी ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना मथुरा में की गई ।
1526 मैं हुई पानीपत की पहली लड़ाई में मुग़ल बादशाह बाबर ने दिल्ली के अफगान शासक इब्राहिम लोधी को हराने के लिए उत्तर भारत में पहली बार आर्टिलरी का प्रयोग किया। दिल्ली में मुग़ल शासको मैसूर में टीपू सुल्तान एवं हैदराबाद में निजाम के दौर में आर्टिलरी का व्यापक विकास हुआ । लेकिन महाराजा रंजीत सिंह के नेतृत्व में सिक्खों ने भारतीय इतिहास में आर्टिलरी का सबसे अधिक प्रभावी ढंग से प्रयोग किया तथा इस युद्ध कौशल के उच्च मानक के रूप में स्थापित किया ।
दुश्मन के तोपो को पता लगाने संबंधी प्रयास का भारत में पहला वर्णन टीपू सुल्तान द्वारा की गयी लड़ाई के दौरान मिलता है । आधुनिक समय के भारतीय निगरानी एवं लक्ष्य अर्जन (SATA) गनर की शुरुवात 1925 में हुई जब ‘नाइन ओरिजनल्स’ को एक साथ मिलाकर कैप्टन ई बी कलवारवेल,एम सी के नेतृत्व मे आर्टिलरी स्कूल काबुल में प्रथम सर्वेक्षन सैक्शन की स्थापना की गई । अगस्त 1942 तक इसका विस्तार करके प्रथम भारतीय सर्वेक्षन रेजिमेंट का रूप दे दिया गया ।
आरंभ में रॉयल मिलिटरी अकेडमी वूल विच से केवल तीन भारतीय अफसर को आर्टिलरी में कमिशन प्रदान किया गया था । आर्टिलरी में कमिशन प्राप्त करने वाले पहले भारतीय अफसर प्रेम सिंह ज्ञानी थे जिसके पश्चात पी पी कुमार मंगलम एवं ए एस काल्हा को कमिशन प्रधान किया गया । उन्हें 15 जनवरी 1935 को बैंगलोर में स्थापित की गई फील्ड ब्रिगेड में तैनात किया गया ।