इतिहास
1. मिलिट्री डेंटल सर्विस: 18 वीं शताब्दी तक जवानों के दांत पर कोई ध्यान नहीं देता था। सैनिकों के डेंटल फिटनेस का महत्व तब समझ में आया जब ग्रेनेडों और कारतूसों को फायरिंग से पहले दांत से काटना होता था। किसी न किसी रूप में सैन्य चिकित्सा सेवा भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान मौजूद थी। पर डेंटल फिटनेस के बाबत जागरूकता सिर्फ बोर युद्ध के दौरान ही फैली जबकि सैनिक दांत संबंधी बीमारियों की वजह से लाचार हो गए और उन्हें युद्ध के मैदान से बाहर निकालना पड़ा। यह तभी महसूस किया गया कि वह सेना जो (दांत से) काट नहीं सकती, लड़ नहीं सकती है। वर्ष 1905 से ही, भारत में ब्रिटिश ट्रूपों को दंत चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध थी जब कर्नल रैंक से नीचे के कुछेक मेडिकल अफसरों को विशेषज्ञता वेतन मिलता था। मूलभूत दंत चिकित्सा उन मेडिकल अफसरों द्वारा मुहैया करायी जाती थी जिनकी दंत चिकित्सा विज्ञान में कुछ अभिरूचि थी। यद्यपि 70% भारतीय ट्रूपों को दांत से जुड़ी कोई न कोई बीमारी थी पर भारतीय ट्रूपों को दंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना जरूरी नहीं समझा जाता था।
2. भारतीय ट्रूपों के लिए दंत चिकित्सा: भारतीय ट्रूपों के लिए दंत चिकित्सा की शुरूआत 1 फरवरी, 1941 से की गई जब भारतीय चिकित्सा सेवा की नवगठित दंत चिकित्सा शाखा जिसे आईएमएस (डी) के नाम से जाना जाता था, में आठ सिविलियन डेंटल सर्जनों को एमर्जेंसी किंग्स कमीशन प्रदान किया गया था। उन्हें (4) चार हफ्तों का बेसिक सैन्य प्रशिक्षण देकर ब्रिटिश आर्मी डेंटल सेंटर देहरादून, रावलपिंडी, पूना और क्वेटा भेजा गया था। आईएमएस (डी) के लिए योग्यता को भारतीय अधिवास वाले ब्रिटिश नागरिकों य पर्याप्त डेंटल योग्यताओं सहित 45 वर्ष से कम उम्र के भारतीय नागरिक होने तक सीमित कर दिया गया था। वे बतौर लेफ्टिनेंट जॉइन करके तीन महीने तक परखाधीन रहते थे। एक साल की सेवा के बाद उन्हें कैप्टन के रैंक में पदोन्नत कर दिया जाता था। धीरे धीरे, भारतीय सैन्य अस्पतालों में भारतीय ट्रूपों के लिए विभिन्न आर्मी डेंटल सेंटर स्थापित किए गए थे जिनमें अधिकांश में एक पीठ हुआ करती थी पर कुछ बड़े सैन्य अस्पतालों में एक से अधिक पीठ भी होती थी। भारतीय डेंटल अफसरों के पहले बैच के कार्य प्रदर्शन को काफी सराहा गया और शीघ्र ही उनकी नफरी बढ़ाकर 23 कर दी गई। उसके बाद युद्ध की आवश्यकताओं के मद्देनज़र इसे तेजी से बढ़ाया जाता रहा। फील्ड में सुरक्षा बलों को डेंटल कवर देने के लिए मोबाइल डेंटल यूनिटों का गठन किया गया और आमतौर पर भारत के प्रत्येक जनरल अस्पताल को एक एक यूनिट आवंटित किया गया था।
3. इंडियन मेडिकल सर्विस (डेंटल) वर्ष 1943 में इंडियन आर्मी डेंटल कोर (आईएडीसी) बन गई और उपयुक्त डेंटल योग्यताओं वाले सभी अफसरों को नई कोर में भेज दिया गया। 1943 के अंत तक आईएडीसी के अफसरों की नफरी बढ़कर 131 हो गई थी। आईएडीसी के गठन के पीछे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कर्नल आर मंटन किंग (आरएडीसी) थे। उन्हें न सिर्फ इसके गठन का श्रेय प्राप्त है बल्कि बल्कि आइएडीसी के विस्तार और प्रसार का भी श्रेय भी उन्हें ही प्राप्त है यानि सही मायने में उन्हें भारत में आर्मी डेंटल सर्विसेज का सूत्रधार भी माना जाता है।
4. द्वितीय विश्व युद्धोत्तर परिदृश्य: जब युद्ध समाप्त हो गया तो अधिकांश डेंटल यूनिटों को विघटित कर दिया गया पर स्थायी स्थापना के तौर पर कोर को बनाए रखने की आवश्यकता महसूस की गई। तदनुसार, इस सेवा में बने रहने के इच्छुक अफसरों की सूची बनाई गई। 31 अफसरों में से, 26 को भारतीय सेना डेंटल कोर में स्थायी कमीशन प्रदान किया गया था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद, उनमें से कुछ पाकिस्तान चले गए। शेष बचे सभी आर्मी डेंटल सेंटरों में भारतीय कार्मिकों को मिलिट्री डेंटल सेंटर बनाने के लिए पुनर्गठित किया गया।
5. आज़ादी के बाद का परिदृश्य : दंत चिकित्सा विज्ञान धीरे धीरे फैलने लगा और दंत चिकित्सक अधिनियम, 1948 बनने के साथ ही इसे काफी लोकप्रियता मिलने लगी। यह निर्णय लिया गया था कि सशस्त्र सेनाओं में प्रति 4000 प्रशिक्षित सैनिकों पर एक दंत चिकित्सक और हर 13000 प्रशिक्षु सैनिकों पर एक दंत चिकित्सक होना चाहिए। कमी को पूरा करने के लिए 20 सिविलियन डेंटल सर्जनों को अल्प सेवा कमीशन दिया गया था। इन अफसरों को तीन साल के लिए कमीशन प्रदान किया गया था जिसे पांच साल तक बढ़ाए जाने का प्रावधान था। स्थायी कमीशन प्राप्त करने के लिए उन्हें दो अवसर दिए गए थे। 1955 तक 82 कार्मिकों का स्थायी कैडर अनुमोदित किया गया जिसमें प्रति वर्ष तीन नए कार्मिकों को शामिल करने का प्रावधान था। 1959 में नफरी को बढ़ाकर 97 और 1965 में सालाना प्रवेश की नफरी बढ़ाकर 17 कर दी गई। दो साल के वाद, स्नातकोत्तर योग्यताओं वाले डेंटल सर्जनों को आकर्षित करने के लिए सीधे स्थायी कमीशन को मंजूरी दी गई।
1963 में, महिला डेंटल अफसरों को अल्प सेवा कमीशन के लिए पात्र बनाया गया। समयबद्ध पदोन्नति की दृष्टि से वर्ष 1950 में सेवा शर्तें संशोधित की गई। कोई अफसर 10 वर्षों की सेवा के वाद मेजर के रैंक में और 21 और 23 वर्षों की सेवा के बाद क्रमश: लेफ्टिनेंट कर्नल और कर्नल के रैंक में पदोन्नति का पात्र था।
लेफ्टिनेंट कर्नल के लिए अधिवर्षिता की अधिकतम उम्र 55 वर्ष और कर्नल के लिए 57 वर्ष निर्धारित की गई थी 1966 में डेंटल अफसरों को निजी प्रैक्टिस से वंचित कर दिया गया था और इसके बदले उन्हें गैर प्रैक्टिस भत्ता दिए जाने का प्रावधान किया गया था। विभिन्न वेतन आयोगों के द्वारा रक्षा बलों के वेतन भत्तों को कई बार संशोधित किया गया और वर्ष 1967 में कोर के शीर्षस्थ चयन पद को बढ़ाकर मेजर जनरल कर दिया गया जिसकी सेवानिवृत्ति की आयु 59 वर्ष थी जो फिलहाल 60 वर्ष कर दी गई है। शीर्षस्थ चयन पद को बढ़ाकर वर्ष 2001 में दंत चिकित्सा सेवा महानिदेशक के पदनाम सहित लेफ्टिनेंट जनरल के रैंक में कर दिया गया। फिलहाल कोर में एक लेफ्टिनेंट जनरल और पांच मेजर जनरल हैं।
6. आर्मी डेंटल कोर युद्ध और शांति दोनों के समय सशस्त्र सेनाओं को मल्टी स्पेशलिटी दंत चिकित्सा सुविधा प्रदान करती है।