परिचय
एमसीटीई अधिकारियों, जेसीओ और सेना के अन्य रैंकों के लिए दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम संचालित करता है। मित्र देशों के छात्र भी यहाँ पाठ्यक्रमों में भाग लेते हें। जुलाई 2000 से, सभी शस्त्रों और सेवाओं के लिए तकनीकी प्रवेश योजना के तहत जेंटलमैन कैडटों को इंजीनियरींग स्नातकों के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
उद्भव
स्वतंत्रता तक,सिग्नल कोर का नेतृत्वयूके में प्रशिक्षित रॉयल सिग्नल केअधिकारियों द्वारा किया जाता था।
1933-40 की अवधि के दौरान भारतीय कमीशन अधिकारियों को एसटीसी जबलपुर और आर्मी सिग्नल स्कूल,पूना में प्रशिक्षित किया गया था।
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इसके अतिरिक्त,आगरा में दूरसंचार स्कूल और महू में संचार सुरक्षा स्कूल (साइफर)में विशेषज्ञ प्रशिक्षण दिया गया था।1940-46 के समय एसटीसी (ब्रिटिश) महू के हिस्से के रूप में,एक सिग्नल ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल, ने रॉयल सिग्नल में कमीशन कैडेटों के साथ-साथ भारतीय सिग्नल कोर के कमीशन अधिकारियों को भी प्रशिक्षण प्रदान किया।(यह महू में स्थापित पहला प्रशिक्षण संस्थान था,जिसके बाद 1948 में इन्फ़ेंट्री स्कूल की स्थापना हुई।)
सन् 1948 में आर्मी सिग्नल स्कूल पूना को छोड़कर उपरोक्त सभी संस्थानों को भारतीय सिग्नल कोर स्कूल बनाने के लिए महू में मिला दिया गया। स्वतंत्रता के बाद,25 जून 1948 में इसका नाम बदलकर स्कूल ऑफ सिग्नल कर दिया गया। स्कूल का गठन वायोस(नंबर 1 स्क्वाड्रन),तकनीकी प्रशिक्षण(नंबर 2स्क्वाड्रन) और साइफर प्रशिक्षण (नंबर 3 स्क्वाड्रन) के रूप में किया गया। कुछ ही महीनों के भीतर स्क्वाड्रनों का नाम बदलकर कंपनीज़ कर दिया गया। सन् 1949 की शुरुआत में, स्कूल के नाम को पुनः संशोधित किया गया तथा इंडियन सिग्नल कॉर्प्स स्कूल कॉ सिग्नल स्कूल के रूप में पुनः नामित किया गया।सन् 1952 में आर्मी सिग्नल स्कूल,पूना भी पूना सेमहू स्थानांतरित हुआ और 1 जुलाई 1953 तक अपनी अलग पहचान बनाए रखी जब इसे सिग्नल स्कूल के भाग के रूप में समाहित कर लिया गया।विंग्स को टेक्टिकल,टेक्निकल, सिफर और ऑल आर्म्स विंग्स में रूपांतरित किया गया।
सन् 1962 में आपातकाल के परिणामस्वरूप भारतीय सैन्य स्कूल (अब आईएमए) के कैडेटों को पूर्व-कमीशन सिग्नल प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस की गई। इस प्रकार फरवरी 1963 में टेक्टिकल विंग से संबद्ध एक अतिरिक्त ‘कैडेट्स’ विंग अस्तित्व में आया जिसे बाद में वायोस विंग कहा गया। (यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि सन् 2000 में,यानी 54 साल बाद,एक कैडेट ट्रेनिंग विंग ,जो जीसीको अधिकारी बनने के लिए प्रशिक्षित करता है, ने एक बार फिर एमसीटीई के तत्वाधान में काम करना शुरू कर दिया है।)
1 अक्टूबर 1967 में स्कूल को मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग के रूप में पुनः नामित किया गया और टेक्टिकल व टेक्निकल विंग जो क्रमशः फेकल्टीऑफ कॉम्बेटकम्यूनिकेशंस(एफसीसी)व फेकल्टीऑफ कम्यूनिकेशनइंजीनियरिंग (एफसीई) के नाम से पहचानी गई। 1967 में स्कूल से कॉलेज में स्नातक स्तर पर तकनीकी रखरखाव और प्रशिक्षण एड्स विंग और क्यूएम विंग को भी कॉलेज में सम्मिलित किया गया। कंप्यूटरों के आगमन के साथ ही फरवरी 1971 में कंप्यूटर प्रौद्योगिकीऔर प्रणालियों के संकाय को जोड़ा गया।
सभी सिग्नल अधिकारियों का अल्मा-मेटर,एमसीटीई,संचार और सूचना प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण के सभी मामलों में कोर और सेना के लिए पथ-प्रदर्शक है। इसने युद्ध–संचार,इलेक्ट्रोनिक युद्ध, संचार इंजीनियरिंग,कंप्यूटरऔर सूचना प्रौद्योगिकी,रेजिमेंटल सिग्नल संचार और क्रिप्टोलोजी में नौसेना और वायुसेना के साथ-साथ भारतीय सेना के सभी शस्त्रों और सेवाओं के कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।