इतिहास

भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून का इतिहास

भारतीयकरण की प्रक्रिया

      ब्रिटिश शासन से आजादी प्राप्त करने से 15 वर्ष पूर्व अकादमी की स्थापना का काम आरम्भ हो गया था । प्रथम विश्व युद्ध में भारत के वीरों ने ऐसा कारनामा किया था कि सबसे प्रतिष्ठित 11 विक्टोरिया क्रॉस, 5 मिलिट्री क्रॉस और कई वीरता पुरस्कार भारतीयों को प्रदान किए गए।


चौहत्तर हजार से अधिक सैनिकों के विशाल बलिदान ने अंग्रेजों को अपनी धारणा बदलने पर मजबूर कर दिया । मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार पेश किए गए
, जिससे दस भारतीयों को कमीशन अधिकारियों के रूप में सेना में शामिल होने के लिए सैंडहर्स्ट में प्रशिक्षण प्रदान करना सुनिश्चित किया  गया।

 राजनीतिक रूप से भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना 28 मार्च 1921 को तब हुई जब सेना पर बने ईशर कमीशन की रिपोर्ट पर विधान सभा में एक प्रस्ताव पारित कर दिया गया । जनरल एन्ड्रीव स्किन की अध्यक्षता में 1925 में एक समिति बनायी गई जिसका उद्देश्य देश में भारतीय- सैन्डहर्स्ट  की बनाने की सम्भावनाओं का पता लगाना था

 1928 तक, विधान सभा में दबाव बढ़ रहा था, जब पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू और सर टीवी शेषगिरी अय्यर ने बहस के दौरान अकाट्य तर्क प्रस्तुत किए, और बाद में 1930 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन,


भारतीय सैंडहर्स्ट की स्थापना की संस्तुति की गई इसी क्रम में भारत के तत्कालीन फील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवुड की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसका काम भारतीय- सैन्डहर्स्ट   की स्थापना से संबंधित तौर-तरीकों पर काम करना था ।