1. आजादी से पहले, उत्तरी कमान रावलपिंडी में स्थित थी जो कि उत्तर पश्चिम भारत की रक्षा के लिए जिम्मेदार थी। विभाजन पर, कमान मुख्यालय पाकिस्तान को आवंटित किया गया था। भारत-तिब्बत सीमा के कुछ हिस्से के साथ हमारी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं की रक्षा की निगरानी के लिए मुख्यालय शिमला में स्थित था।
2. उत्तर में एक अलग मुख्यालय की आवश्यकता 1948 के युद्ध के समय से ही महसूस की जा रही थी। 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के संचयी अनुभव ने इस दृढ़ विश्वास को मजबूत किया कि भू-रणनीतिक रूप से उत्तरी थियेटर को शिमला से स्थित एक मुख्यालय द्वारा प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता था। सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए एक अलग उत्तरी कमान बनाने की आवश्यकता को 17 जून 1972 को पूरा किया गया , जिसमें शुरू में दो कोर अधीन थी जिसे बाद में बढ़ाकर चार कोर दिया गया, एवं ‘स्ट्राइक एक’ को उत्तरी कमान में पुनर्गठित किया गया ताकि पूर्वी लद्दाख में ऑपरेशंस की क्षमता बढ़ाई जा सके।
3. उत्तरी कमान भारत के अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रो की रक्षा करती है, जिसमें जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख शामिल है। इसके पहले जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत, वीसी, पीवीएसएम थे। वर्तमान जीओसी-इन-सी, लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी, एवीएसएम ने 01 फरवरी 2022 को उत्तरी कमान का पदभार संभाला।
4. कमान फॉर्मेशन साइन में कमान की लाल तथा काला रंग की धारीयों के बीच में 'ध्रुव' या 'नॉर्थ स्टार' है, तथा कमान के भौगोलिक उत्तर का प्रतीक है, क्योंकि इसे हमारे देश की उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ' ध्रुव तारा’ भारतीय पौराणिक कथाओं से प्रेरणा लेता है तथा साहस, युद्ध में दृढ़ता और धर्म को दर्शाता है।
5. उच्च और निम्न तीव्रता वाले बड़ी संख्या के ऑपरेशन देखने वाली उत्तरी कमान अपनी स्थापना के समय से ही ऑपरेशन के लिए तैयार रही है । आज उत्तरी कमान सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती, आतंकवाद के अभिशाप और जम्मू-कश्मीर में शातिर छद्म युद्ध का मुकाबला करने के लिए राष्ट्र के प्रयासों में सबसे आगे है। इस प्रकार, चाहे आधिकारिक तौर पर शांति में हो या ऑप्स में, उत्तरी कमान के यौद्धा हमेशा लड़ाई के लिए तैयार हैं।