
सेकंड लेफ्टिनेंट अरूण क्षेत्रपाल, पीवीसी (मरणोपरान्त)
16 दिसम्बर 1971 को जब भारतीय सेना की पश्चिमी क्षेत्र में थी तब सेकंड लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल ने रेडियो पर पाकिस्तानी आर्मड के द्वारा हमला करने की खबर सुनी। वे अपने टैंकों के साथ दुश्मन के मजबूत ठिकानों पर हमला करने के लिए रवाना हो गये। दुश्मन के ठिकाने की ओर आगे बढते हुए उन्होंने अनेक दुश्मनों को पिस्टल की नोक पर कैप्चर कर दिया। जब दुश्मन ने तुरंत एक और हमला किया तो सेकंड लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल ने स्वयं दुश्मन पर हमला करके उनके चार टैंकों को ध्वस्त कर दिया। युद्ध के दौरान उनके टैंक पर हमला हुआ और वह जख्मी हो गए। वहां उन्होंने खतरे से दूर जाने के बजाय जब उन्होंने देखा कि दुश्मन लगातार उन पर हमला कर रहा था तो वह दुश्मन के टैंकों को लगातार ध्वस्त करते रहे और एक और टैंक को खत्म कर दिया। उनके टैंको पर दोबारा हमला हुआ। इस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रक्रिया के दौरान सेकंड लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल ने दुश्मन के चेहरों पर खौफ पैदा करने में अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया।

मेजर (बाद में कर्नल) होशियार सिंह, पीवीसी, ग्रेनेडियर्स
15 दिसम्बर 1971 को मेजर होशियार सिंह को दुश्मनों के कब्जे में आये हुए इलाके जरपाल को मुक्त कराने का हुक्म दिया मिला। पाकिस्तान ने लगातार तीन जवाबी हमले किए जिनमें से दो टैंको द्वारा जबरदस्त और तेज हमला किया गया, फिर भी मेजर होशियार सिंह ने अपनी सेना को उठ खडे होने ओर डटकर सामना करने के लिए प्रेरित करते रहे। इसी प्रेरणा की वजह से दुश्मन को काफी हानि हुई फिर 17 दिसम्बर 1971 को दुश्मन ने दोबारा मजबूत होकर भारी तोप गोले बरसाये। दुश्मन की बमबारी से वह जख्मी हो गये पर फिर भी अपनी जान की परवाह किए बिना वह एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे में जाते रहे और अपने सैनिकों में जोश भरते रहे। जब दुश्मन की बमबारी ने एक मशीनगन को नुकसान पहुंचाया तो मेजर होशियार सिंह ने अपनी मशीन गन को उठाया और भारी नुकसान उठाते हुए दुश्मन पर दोबारा हमला बोल दिया। दुश्मन अपने 85 मृत सैनिकों को वहाँ छोड़कर भाग गये जिसमें उनके कमान अधिकारी भी शामिल थे। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी मेजर होशियार सिंह ने उस जगह को छोडने से मना कर दिया और पूरे ऑपरेशन का शुरू से अंत तक गर्व के नेतृत्व किया। मेजर होशियार सिंह ने इस ऑपरेशन में अपनी अविश्सनीय बहादुरी, अदम्य साहस, देश के लिए मर मिटने की भावना व कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन किया।

लेफ्टनेंट कर्नल एबी तारापोर, परमवीर चक्र (मरणोपरान्त)
लेफ्टिनेंट कर्नल एबी तारापोर के नेतृत्व में पूना हॉर्स को फिलौरा पोस्ट पर कब्जा करने का जिम्मा सौंपा गया। लेफ्टिनेंट कर्नल एबी तारापोर ने घायल होने के बावजूद पाकिस्तानी बख्तरबंद जवाबी हमले का वीरता से सामना किया। घायल होने के बावजूद व बिना किसी इलाज के पाकिस्तान के तीन ठिकानों पर कब्जा करने में अपनी रेजिमेंट का कुशल नेतृत्व किया। दुश्मन के लगातार हमले एवं अपने घावों की परवाह किया बगैर उन्होने बेहतरीन परम्परा को आदर पूर्वक निभाया।