
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू घोड़ों के बहुत ज्यादा शौकीन और घुड़सवारी का जुनून रखते थे। उन्होंने मिलिट्री प्रशिक्षण अकादमियों में घुड़सवारी को मिलिट्री ट्रेनिंग में शामिल करवाने में मदद की। पंडित जी प्रायः अपने आवास ‘तीन मूर्ति’ से कार्यालय तक और राष्ट्रपति भवन तक घुड़सवारी करते हुए देखे जाते थे। 61 कैवलरी का चार्जर "पृथ्वीराज" प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की व्यक्तिगत पसंद था। जब 1960 में घोड़े ने रिटायरमेंट प्राप्त किया तो उसे तीन मूर्ति आवास में लाने के लिये कहा गया और वहाँ प्रधानमंत्री ने औपचारिक रूप से उपहार में उसे घोड़े का गलीचा दिया। वह घोड़े का गलीचा आज भी शान से रेजिमेंट के क्वार्टर गार्ड में प्रदर्शित किया जाता है जो कि बहुत कीमती है।
61 कैवलरी
61 कैवलरी अकेली घुडसवार यूनिट है और यह अंतर इसको सबसे अलग करता है और यह पूरे विश्व में घोड़ों से संबंधित खेल में अपने योगदान के लिये जानी जाती है। इसने सभी क्षेत्र में अच्छा काम किया है। इसकी घुड़सवारी की महिमा का पता इसके रिकार्ड, ईनाम और मैदान में इसकी प्रस्तुति से पता चलता है। स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों का वर्चस्व फीका पडने लगा तो 61 कैवलरी ने भारतीय पोलो की मशाल को आगे बढाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसी कोई भी प्रतियोगिता नहीं है जो इसने देश में जीती न हो। रेजिमेंट ने 273 घोड़ों और सीमित संसाधनों के बावजूद अपने सभी कर्तव्यों का पूरी जिम्मेदारी के साथ निर्वहन किया है। घोड़ों से संबंधित खेलों में रेजिमेंट का स्तर बहुत अव्वल है और इस रेजिमेंट ने घुड़सवारी में बहुत नाम कमाया है इनके नाम अनेक पुरस्कार हैं जैंसे कि 01 पद्मश्री, 10 अर्जुन पुरस्कार साथ हा ओलम्पिक गेम, एशियन गेम, वर्ल्ड कप पोलो चैम्पयनशिप रेजिमेंट ने भारतीय सेना की छवि देश और विदेश दोनों में बढाई है।